- प्राइमरी वर्ग में 2481 (0.91 प्रतिशत) पास
- अपर प्राइमरी वर्ग में मात्र 2368 (0.45 प्रतिशत) पास
- डीएवी में अब सीटेट पास ही
पात्रता परीक्षा में प्रतिभागियों के
शैक्षणिक ज्ञान को केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटेट) के परिणाम ने
आइना दिखा दिया है। नवंबर में संचालित की गई इस परीक्षा में 1 फीसदी युवा
क्वालीफाई ही कर पाए हैं। इस परिणाम ने जहां परीक्षा की तैयारी का दंभ भरने
वाले सेंटरों की कलई खोली है तो वहीं दूसरी ओर सीबीएसई के स्कूल संचालक भी
इस परिणाम पर हैरान हैं। यह स्थिति फिर से उत्पन्न नहीं हो, उसके लिए अब
शैक्षणिक संस्थानों ने शिक्षक की स्थाई नियुक्ति के लिए बीएड के साथ सीटेट
उत्तीर्ण को भी अनिवार्य कर दिया है।
यह परीक्षा दो वर्गों में आयोजित की गई। जिसमें लगभग आठ लाख उम्मीदवार बैठे थे, लेकिन ओवरआल स्तर पर पास प्रतिशत एक प्रतिशत ही नहीं रह सका। बता दें कि प्राइमरी वर्ग में इस परीक्षा में जहां 2481 (0.91 प्रतिशत) उम्मीदवार पास हुए, वहीं अपर प्राइमरी वर्ग में मात्र 2368 (0.45 प्रतिशत) उम्मीदवार ही क्वालिफाई हो पाए।
कम समय तो नहीं कारण: शिक्षाविद् इंद्रजीत पराशर का कहना है कि ऐसी नौबत इसलिए भी उत्पन्न हुई क्योंकि १५० सवालों के लिए समय कम रखा गया है जबकि जवाब काफी लंबे देने होते हैं।
इस खराब प्रदर्शन के पीछे शिक्षण संस्थानों में नॉन अटैंडिंग ट्रेंड एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। बीएड और डीएड के सिलेबस में बच्चों के मनोविज्ञान और उन्हें पढ़ाने की तकनीक को बारीकी से अध्ययन कराया जाता है। पात्रता परीक्षा में भी बच्चों पर ही आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकांश स्टूडेंट्स बिना कॉलेज में आए ही परीक्षा पास करना चाहते हैं, लेकिन जब तक वे पूरा सिलेबस नहीं कर लेते, उनका ज्ञान अधूरा रहता है। खराब परीक्षा परिणाम के पीछे यही मुख्य कारण है।
भावी शिक्षकों का यह प्रदर्शन
हरियाणा पात्रता परीक्षा में भी इसी तरह का रहा था। वर्ष 2011 में हुई इस
परीक्षा का ओवर आल रिजल्ट भी 20 फीसदी से भी कम रहा था। परीक्षा के
प्राइमरी और अपर प्राइमरी वर्ग में तीन लाख 24 हजार उम्मीदवारों ने अपनी
उपस्थिति दर्ज कराई थी। इसमें मात्र 57 हजार 818 उम्मीदवार ही क्वालिफाई
हुए। जेबीटी वर्ग की परीक्षा का रिजल्ट 19 फीसदी रहा, वहीं अपर प्राइमरी
वर्ग में 15.7 फीसदी उम्मीदवार ही पास हुए।यह परीक्षा दो वर्गों में आयोजित की गई। जिसमें लगभग आठ लाख उम्मीदवार बैठे थे, लेकिन ओवरआल स्तर पर पास प्रतिशत एक प्रतिशत ही नहीं रह सका। बता दें कि प्राइमरी वर्ग में इस परीक्षा में जहां 2481 (0.91 प्रतिशत) उम्मीदवार पास हुए, वहीं अपर प्राइमरी वर्ग में मात्र 2368 (0.45 प्रतिशत) उम्मीदवार ही क्वालिफाई हो पाए।
कम समय तो नहीं कारण: शिक्षाविद् इंद्रजीत पराशर का कहना है कि ऐसी नौबत इसलिए भी उत्पन्न हुई क्योंकि १५० सवालों के लिए समय कम रखा गया है जबकि जवाब काफी लंबे देने होते हैं।
इस खराब प्रदर्शन के पीछे शिक्षण संस्थानों में नॉन अटैंडिंग ट्रेंड एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। बीएड और डीएड के सिलेबस में बच्चों के मनोविज्ञान और उन्हें पढ़ाने की तकनीक को बारीकी से अध्ययन कराया जाता है। पात्रता परीक्षा में भी बच्चों पर ही आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकांश स्टूडेंट्स बिना कॉलेज में आए ही परीक्षा पास करना चाहते हैं, लेकिन जब तक वे पूरा सिलेबस नहीं कर लेते, उनका ज्ञान अधूरा रहता है। खराब परीक्षा परिणाम के पीछे यही मुख्य कारण है।
"डीएवी शिक्षा बोर्ड ने तय किया है कि
अब देश भर के किसी भी संस्थान में शिक्षक भर्ती के दौरान उसकी बीएड योग्यता
के साथ साथ सीटेट क्वालीफाई प्रमाण पत्र को भी देखा जाएगा।"
- वीके मित्तल,
प्रिंसिपल, डीएवीएम स्कूल, सोनीपत
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