राज्यों में समुचित योग्यता के बगैर ही प्राथमिक
स्कूलों में शिक्षकों की तदर्थ (adhoc) नियुक्तियों पर कड़ा रुख अख्तियार
करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस तरह की नीतियाँ समूची शिक्षा
व्यवस्था और देश के भविष्य को ही चौपट कर रही हैं।
न्यायाधीश बीएस चौहान और न्यायाधीश दीपक मिश्र की पीठ ने इस व्यवस्था से
असहमति व्यक्त करते हुये जानना चाहा कि शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने
के बाद इस नीति को कैसे आगे बढ़ाया जा सकेगा। पीठ ने गुजरात के प्राथमिक
स्कूलों में विद्या सहायक की नियुक्ति से संबंधित मामले में राज्य सरकार की
याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि हम ऐसे शिक्षकों की
योग्यता के बारे में जानना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे शिक्षकों की योग्यता और नियुक्तियों से संबंधित विवरण तैयार करने का राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के अस्तित्व में आने के बाद आप इस तरह की नीति कैसे तैयार कर सकते हैं। इस तरह की नीति से अदालत भी आश्चर्यचकित है। उत्तर प्रदेश में भी इस तरह की नियुक्तियां की गई हैं। अदालत ने कहा कि कई राज्यों में प्राथमिक शिक्षकों की तदर्थ नियुक्तियाँ की जा रही हैं और इसके लिए उन्हें नियमित शिक्षकों की तुलना में एक चौथाई कम वेतन मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे शिक्षकों की योग्यता और नियुक्तियों से संबंधित विवरण तैयार करने का राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के अस्तित्व में आने के बाद आप इस तरह की नीति कैसे तैयार कर सकते हैं। इस तरह की नीति से अदालत भी आश्चर्यचकित है। उत्तर प्रदेश में भी इस तरह की नियुक्तियां की गई हैं। अदालत ने कहा कि कई राज्यों में प्राथमिक शिक्षकों की तदर्थ नियुक्तियाँ की जा रही हैं और इसके लिए उन्हें नियमित शिक्षकों की तुलना में एक चौथाई कम वेतन मिलता है।
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