हरियाणा सरकार द्वारा गेस्ट टीचरों को पात्रता परीक्षा से छूट देने का
मामला गले की फांस बनता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पात्रता परीक्षा में
छूट देने के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि
पात्रता परीक्षा में छूट का लाभ लेकर नियुक्त हुए टीचरों की नियुक्ति इस
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। इसी के साथ सुप्रीम
कोर्ट ने हरियाणा सरकार को तीन सप्ताह में इस मामले में जवाब देने को भी
कहा है।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा पात्रता परीक्षा से छूट देने के निर्णय
को सही ठहराने के फैसले के खिलाफ पात्र अध्यापक संघ से जुड़े उम्मीदवारों
शिवानी गुप्ता व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हाईकोर्ट के
निर्णय को रद करने की मांग की है। इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के
मुख्य न्यायधीश जस्टिस अल्तमश कबीर, जस्टिस विक्रमजीत सिंह व जस्टिस अनिल
आर दवे की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब
किया है। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ
अधिवक्ता नागेश्र्वर राव ने बहस करते हुए कहा कि सरकार ने अतिथि अध्यापकों
के संदर्भ में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के निर्णयों को बाईपास
कर अतिथि अध्यापकों को नियमित करने के मकसद से नए सर्विस रूल में छूट
संबंधी यह प्रावधान किया है।
उन्होंने कहा कि पूर्व में भी सरकार ने नियमित
अध्यापक भर्ती में अतिथि अध्यापकों को पात्रता से छूट व शिक्षण अनुभव के
24 अंक देने का प्रावधान किया था, जिसे हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने अतिथि
अध्यापकों को नियमित करने का प्रयास मानते हुए रद कर दिया था। उन्होंने
दलील दी कि अब हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अतिथि व अन्य अध्यापकों को
पात्रता से छूट देने के निर्णय को सही ठहराया है, लेकिन उसका कोई कानून
सम्मत ठोस आधार हाई कोर्ट ने अपने फैसले में नहीं दिया है और न ही योग्य
उम्मीदवारों को संविधान की धारा 14 व 16 के तहत प्रदत्त अधिकारों को ध्यान
में रखा। चार बार मौका मिलने पर भी पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने में विफल
रहे उम्मीदवारों को पात्रता परीक्षा पास योग्य उम्मीदवारों की श्रेणी में
रखना कानून सम्मत नहीं है।
No comments:
Post a Comment