शिक्षा विभाग अब स्कूलों पर ज्योग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) से नजर रखेगा। इस सैटेलाइट मैपिंग प्रक्रिया के जरिये जानकारी जुटाई जाएगी कि किस इलाके में कितने स्कूल हैं और कहां स्कूल की जरूरत है। इस प्रक्रिया के जरिये मर्ज किए जाने वाले स्कूलों की जानकारी भी जुटाई जाएगी। इसके अलावा एक स्कूल से दूसरे स्कूल के बीच की दूरी और उनमें नामांकित बच्चों की संख्या भी इससे पता लग जाएगी। विभाग राज्य के 1.20 लाख स्कूलों में इस सिस्टम के जरिये मैपिंग करेगा।
पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अजमेर के जवाजा पंचायत समिति के 527 स्कूलों की परीक्षण रिपोर्ट तैयार कराई जा रही है। माना जा रहा है कि इससे राजनीतिक दबाव के कारण जरूरत न होने के बावजूद स्कूल खोलने पर भी रोक लगेगी। स्कूल मैपिंग कोऑर्डिनेशन कमेटी के मैंबर सेक्रेट्री और डिप्टी डायरेक्टर आईटी मनीष गुप्ता बताते हैं कि जीआईएस मैपिंग से जयपुर अथवा प्रदेश के किसी भी कोने में बैठे शिक्षाधिकारी राज्य के किसी भी स्कूल के संबंध में तुरंत ही ब्यौरा लेकर उस पर हाथों-हाथ फैसला करने की स्थिति में होंगे। गुप्ता दावा करते हैं कि जीपीएस मशीन की एक्यूरेसी इतनी है कि यदि किन्हीं दो स्कूलों के बीच की दूरी जाननी हो तो इसका अधिकतम अंतर 10 मीटर से ज्यादा नहीं होगा। ऐसे में इसे फूल प्रूफ मानते हुए कोई फैसला लिए जाने में मदद मिल सकेगी।
इस प्रकार होती है मैपिंग : विदेश से आयातित जीपीएस मशीन की सैटेलाइट से कनेक्टिविटी की जाती है और संबंधित स्कूल की लोकशन पता की जाती है। इसके बाद स्कूल को एक कोड दे दिया जाता है। इसके साथ ही स्कूल में नामांकन, शिक्षकों की संख्या सहित संबंधित गांव-ढाणी का ब्यौरा तथा अन्य आंकड़े लोड किए जाते हैं। इसके लिए स्टेट रिमोट सेंसिंग एजेंसी जोधपुर को अधिकृत किया गया है। प्रदेश के जिले, ब्लॉक, ग्राम पंचायत, ग्रामवार नक्शे में प्रदर्शित करने के लिए सभी स्कूलों को इंटरनेट पर ऑनलाइन करने के लिए एनआईसी यह काम करेगी।
और भी होंगे फायदे : संबंधित गांव के साथ ही स्कूल के रास्ते में आने वाले नदी, नाले, पहाड़ के संबंध में भी जानकारी। यह मॉनिटरिंग करने में आसानी रहेगी कि किस स्कूल में नामांकन की क्या स्थिति है। इसकी नियमित मॉनिटरिंग हो सकेगी। हैंडपंप, बिजली कनेक्शन के संबंध में ब्यौरा भी धीरे-धीरे इस सूची में शामिल किया जाएगा। कम छात्र होने पर स्कूल को निकट के स्कूल में मर्ज करने की योजना तैयार करने में मिलेगी मदद। समय के साथ जीआईएस सिस्टम में भी लगातार अपग्रेड होंगे। यह सतत प्रक्रिया है और इसे प्रदेश में भी अपग्रेड किया जाएगा।
पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अजमेर के जवाजा पंचायत समिति के 527 स्कूलों की परीक्षण रिपोर्ट तैयार कराई जा रही है। माना जा रहा है कि इससे राजनीतिक दबाव के कारण जरूरत न होने के बावजूद स्कूल खोलने पर भी रोक लगेगी। स्कूल मैपिंग कोऑर्डिनेशन कमेटी के मैंबर सेक्रेट्री और डिप्टी डायरेक्टर आईटी मनीष गुप्ता बताते हैं कि जीआईएस मैपिंग से जयपुर अथवा प्रदेश के किसी भी कोने में बैठे शिक्षाधिकारी राज्य के किसी भी स्कूल के संबंध में तुरंत ही ब्यौरा लेकर उस पर हाथों-हाथ फैसला करने की स्थिति में होंगे। गुप्ता दावा करते हैं कि जीपीएस मशीन की एक्यूरेसी इतनी है कि यदि किन्हीं दो स्कूलों के बीच की दूरी जाननी हो तो इसका अधिकतम अंतर 10 मीटर से ज्यादा नहीं होगा। ऐसे में इसे फूल प्रूफ मानते हुए कोई फैसला लिए जाने में मदद मिल सकेगी।
इस प्रकार होती है मैपिंग : विदेश से आयातित जीपीएस मशीन की सैटेलाइट से कनेक्टिविटी की जाती है और संबंधित स्कूल की लोकशन पता की जाती है। इसके बाद स्कूल को एक कोड दे दिया जाता है। इसके साथ ही स्कूल में नामांकन, शिक्षकों की संख्या सहित संबंधित गांव-ढाणी का ब्यौरा तथा अन्य आंकड़े लोड किए जाते हैं। इसके लिए स्टेट रिमोट सेंसिंग एजेंसी जोधपुर को अधिकृत किया गया है। प्रदेश के जिले, ब्लॉक, ग्राम पंचायत, ग्रामवार नक्शे में प्रदर्शित करने के लिए सभी स्कूलों को इंटरनेट पर ऑनलाइन करने के लिए एनआईसी यह काम करेगी।
और भी होंगे फायदे : संबंधित गांव के साथ ही स्कूल के रास्ते में आने वाले नदी, नाले, पहाड़ के संबंध में भी जानकारी। यह मॉनिटरिंग करने में आसानी रहेगी कि किस स्कूल में नामांकन की क्या स्थिति है। इसकी नियमित मॉनिटरिंग हो सकेगी। हैंडपंप, बिजली कनेक्शन के संबंध में ब्यौरा भी धीरे-धीरे इस सूची में शामिल किया जाएगा। कम छात्र होने पर स्कूल को निकट के स्कूल में मर्ज करने की योजना तैयार करने में मिलेगी मदद। समय के साथ जीआईएस सिस्टम में भी लगातार अपग्रेड होंगे। यह सतत प्रक्रिया है और इसे प्रदेश में भी अपग्रेड किया जाएगा।
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